Saturday, November 19, 2016

Support demonetisation even if you cannot support Modi

कुछ लोग ऐसे हैं जो अपनी बात तक शुद्ध हिंदी में नहीं कर सकते, वो आजकल आर्थिक विशेषज्ञ बने हुए हैं। कुछ तो ऐसे भी हैं जो सरकार के विमुद्रिकरण की नीति का समर्थन करने वालों को व्यंगात्मक रूप से मोदी भक्त कहने लगते हैं। लेकिन खुद ये भूल जाते हैं को वे लोग मोदी विरोध में इतने अंधे हो चुके हैं कि अपने तर्क का समर्थन करने के लिए न जाने कहाँ-कहाँ से वेबसाइट्स का सन्दर्भ ले रहे हैं। जनतंत्र में असहमति एवं विरोध का उतना ही अधिकार है जितना की चुनी हुई सरकारों का, लेकिन दोनों की अपनी सीमायें होती हैं। बुरे का विरोध और अच्छे की सराहना होनी चाहिए, यही जनतंत्र की बुनियाद है। विमुद्रिकरण से समस्याएं बहुत हैं, लेकिन काले धन से मुक्त होना इन समस्याओं से ज़्यादा ज़रूरी है। देशहित में और आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए इन समस्याओँ को ये सोचते हुए कि देशहित में योगदान कर रहे हैं, बर्दाश्त करें। लोग विरोध तो कर रहे हैं लेकिन विकल्प नहीं बता रहे, ऐसे लोगों पर ध्यान न दें। उनका उद्देश्य सिर्फ मोदी विरोध का तरीका ढूंढना है, आपसे उनका कुछ लेना-देना नहीं है। मोदी से बदला लेने के लिए आपके पास वोट का विकल्प है जो आप समय आने पर उपयोग करेंगे, लेकिन देशहित में विमुद्रिकरण का सहयोग करें।

Sunday, May 29, 2016

Varun Pruthi - Don't bargain with poor vendors

Sunday, May 1, 2016

किसानों को फसल का दाम लगाने का हक़ मिले

सोच कर बड़ा दुःख होता है कि हमारे देश में जहाँ पैसा पानी की तरह बहाया जाता है, जैसे कि आईपीएल हो, बड़े घरानों की शादियाँ हों, वहीँ बहुत से लोग भूख से मर जाते हैं, आत्महत्या के लिए मज़बूर हो जाते हैं और बेघर हैं। ग़रीब आदमी क़र्ज़ के बोझ से लदा हुआ है जिसकी परिणति उसकी आत्महत्या में होती है और बड़े व्यापारिक घरानों को कर में छूट दी जाती है। हमें पश्चिमी देशों से सीखना चाहिए जहाँ सोशल सिक्योरिटी होती है जिसे बड़े करदाताओं के पैसों से बड़ी आसानी से दिया जाता है। हमारे देश में लोग अक्सर ये सवाल पूछते हुए दिखाई देते हैं कि मैं इतना कर क्यों दूँ, मैं पूछता हूँ कि आपने जो पैसा कमाया है उसपे थोड़ा सा हक़ तो ग़रीब जनता का बनता ही है क्योंकि जिन संसाधनों से आपने पैसा कमाया है उसपे भारत का नागरिक होने के नाते ग़रीब का भी उतना ही हक़ है। 

एक पानी की बोतल २० रुपये में बिक जाती है, कोई नहीं कहता की पानी इतना महंगा है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि किसान अपनी मेहनत और पसीने से जो फसल उगाता है उसकी कीमत वातानुकूलित कमरों में बैठे लोग लगाते हैं, और जो कीमत लगायी जाती है वो कौड़ियों के भाव होती है। इससे किसान के लिए अपनी लागत ही निकाल पाना मुश्किल होता है, क़र्ज़ चुका पाना, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा या परिवार की अच्छी देखभाल कर पाना तो दूर की बात होती है। जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पानी की बोतल का दाम लगाने का हक़ है वैसे ही किसानों को भी अपनी फसल का सही दाम लगाने का हक़ होना ही चाहिए। ऐसा करके बेरोज़गार युवाओं को खेती के लिए आकर्षित किया जा सकता है, जो उनके रोज़गार की समस्या में भी बड़ी सहायक सिद्ध होगी। 

Saturday, March 5, 2016

Kanhaiya Kumar of JNU, a crusader?

Kanhaiya Kumar was confined within the boundary of JNU before he was arrested. After the anti-national slogans raised in JNU (we still don't know who were those hooligans, but it was raised that everyone is admitting), he has become a crusader against casteism, manuwaad etc. What is the link between the incident for which he was arrested and the iconic role that he was being named (crusader as I said)? What is his contribution against poverty, casteism etc. I am not telling that he doesn't have that capacity but it's too early to be portrayed him as an icon. Right now he is just an student leader like many others in country.
Court didn't give him clean chit - he is on 6 months interim bail. We still don't know if he was involved or not - let the court decide. But we have to be careful the way we are portraying him now. If we start considering every accused as martyr based on his speech out of the jail, then what's the role of courts in our country. Many people who are involved in heinous crime can give very nice speech - are you ready to judge them based on their speeches. Then why do people question Narendra Modi for Gujarat riot even courts let him to go, he is also a good orator.
I wish that Kanhaiya come out with clean chit - but if in case he could not by court then what will you say? We know Nitish Kumar's U-turn after Ishrat Jahan as a 'Bihar ki Beti' case.

Saturday, January 9, 2016

Malda and Purnia - going to be another Godhra turned Gujarat?

AIM chief Asaduddin Owaisi is alleged for the same case (same IPC sections of constitution in FIR) as Kamlesh Tiwari. Both statements are unfortunate and any sensible person cannot support. But the difference is that Kamlesh Tiwari is in jail and protestors are demanding death sentence which is against the Indian constitution while Asaduddin Owaisi is not even arrested. Everyone has right to protest but cannot break the law and attack other community as done in Malda and Purnia. Suppose, if it would have been done for Asaduddin Owaisi from other community then social media would have been populated with so called "Secular Preachers".

Owaisi holds responsible position while Kamlesh is a patient with mental disorder (psychosis) - once he declared himself Netaji Subhas Chand Bose and was wearing a dress like Netaji for one year and then went for treatment.

It's very unfortunate that no one is talking about. Are they waiting for Godhra (train burning) turned Gujarat? It should be condemned and should take strong action against those making hatred speeches.

Friday, January 1, 2016

Anna's Letter to PM Modi

दि. 01/01/2016
जा.क्र. भ्रविज- 46/2015-16
प्रति,
मा. नरेंद्र मोदी जी,
प्रधान मंत्री, भारत सरकार,
रायसीना हिल, नई दिल्ली
विषय- भ्रष्टाचार को कुछ हद तक रोकने के लिए लोकपाल और लोकायुक्त कानून का अमल करने हेतु और किसानों की खेती पैदावार के लिए सही दाम मिले, इस बारे में।
महोदय,
सस्नेह वंदे।
कांग्रेस की सरकार में भ्रष्टाचार बढ़ गया था। अपने काम के लिए किसी भी दफ़्तर में गए तो बिना पैसा दिए जनता का काम ही नहीं हो रहा था। बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण महंगाई भी बढ़ गई थी। देश की जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त हो गई थी। ग्राम-विकास किए बिना और भ्रष्टाचार को रोके बिना समाज और देश को उज्जवल भविष्य नहीं मिलेगा, ऐसा सोच कर विगत तीस सालों से मैं ग्राम विकास कार्य के साथ भ्रष्टाचार को रोकने के लिए आंदोलन करते आया हूं। मुझ जैसा एक फकीर आदमी, जिसके पास ना धन, ना दौलत, ना सत्ता, ना पैसा है, सिर्फ सोने का बिस्तर और खाने के लिए प्लेट है। लेकिन भ्रष्टाचार रोकने के लिए लोकपाल और लोकायुक्त कानून बने इस हेतु दिल्ली में रामलीला मैदान में 16 अगस्त से 28 अगस्त तक 13 दिन तक मैं अनशन पर बैठा था।
देश के बढते भ्रष्टाचार को रोकना जरूरी है। यह जनता की मन से इच्छा थी। जनता भ्रष्टाचार से बाज आ गई थी। इस लिए पूरे देश की जनता आंदोलन के लिए खड़ी हो गई थी। खास तौर पर युवा शक्ति बड़े पैमाने में रास्ते पर उतर आई थी। देश के हर राज्य में, जिला, तहसील, गांव स्तर पर यह आंदोलन फैल गया था। आजादी के बाद पहली बार देश में इतना बड़ा आंदोलन जनता ने किया था।
बढ़ते भ्रष्टाचार के कारण देश की जनता उस सरकार पर नाराज हो गई थी। ऐसी स्थिति में जब देश में अप्रेल-मई 2014 में लोकसभा का चुनाव आ गया, और आपने जनता को आश्वासन दिया कि, हमारी पार्टी सत्ता में आती है तो, हम भ्रष्टाचार के विरोध की लडाई को प्राथमिकता देंगे। जनता ने आपके शब्दों पर विश्वास किया कि आपकी सरकार सत्ता में आने पर भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण होगा। लेकिन आज भी कहीं पर भी अपने काम के लिए जाने पर बिना पैसा दिए जनता का काम नहीं होता है। न ही महंगाई कम हुई है। उस सरकार और आपकी सरकार में विशेष तौर पर भ्रष्टाचार के बारे में कोई फर्क दिखाई नहीं देता है। जब आप लोकसभा में पहली बार जा रहे थे तब लोकसभा की सीढियों पर नमन करते हुए आपने देशवासियों से कहा था कि, मैं लोकसभा के एक पवित्र मंदिर में प्रवेश कर रहा हूं, उस मंदिर को पवित्र रखने का प्रयास करुंगा। लेकिन ऐसा चित्र कहीं भी नजर नहीं आ रहा है। लोकसभा का पूरा का पूरा सत्र झगड़े-टण्टे में जा रहा है। जनता का करोडों रुपया बर्बाद हो रहा है।
आपने जनता को यह भी आश्वासन दिया था कि, हमारे देश का काला धन जो विदेशों में छुपा है, उसको हमारी पार्टी के सत्ता में आने पर 100 दिन के अंदर देश में वापस लाएंगे और हर व्यक्ति के बैंक अकाउंट में 15 लाख रुपया जमा करेंगे। उस से देश का भ्रष्टाचार कम होगा। लेकिन आज तक किसी व्यक्ती के बँक अकाउँट में 15 लाख तो क्या 15 रुपया भी जमा नहीं हुआ है।
आप की सरकार को सत्ता में आ कर डेढ साल से ज़्यादा समय हो चुका है। लेकिन भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जो लोकपाल और लोकायुक्त कानून बना है, उस पर न तो आप कुछ बोलते हैं और न ही उस पर अमल करते हैं। हम उम्मीद लगाए हुए थे कि मन की बात में कभी लोकपाल और लोकायुक्त के विषय पर आप कुछ ना कुछ बोलेंगे। क्यों कि भ्रष्टाचार के विरोध की लडाई को प्राथमिकता देने की बात देश की जनता से आपने जो कही थी।
हो सकता है, उन बातों का शायद आपको विस्मरण हो गया हो, इसलिए आपको फिर से याद दिलाने के लिए यह पत्र लिख रहा हूं। मुझे यह पता है कि, आज तक आपको लिखे मेरे कई पत्र आपकी कचरे की टोकरी में डल चुके हैं। इस पत्र की भी शायद वही गति होने वाली है, फिर भी समाज और देश की भलाई के लिए मेरी कोशिश जारी रहेगी। देश की जनता ने करोड़ों की संख्या में लोकपाल और लोकायुक्त के लिए देश में आंदोलन किया था। आश्वासन दे कर उस पर  अमल नहीं करना यह, मैं मानता हूं, जिन देशवासियों ने इतना बड़ा आंदोलन किया था उनका अपमान है।
जैसा कि, आप अपने आपको प्रधान सेवक मानते हैं, और वास्तविकता में यह सही भी है कि जनता इस देश की मालिक है। जनता की सनद का कानून बनवाने का आश्वासन न केवल तत्कालीन सरकार ने, बल्कि विरोधी दल के नाते आपके पार्टी के श्रीमती सुषमा स्वराज जी, मा. अरुण जेटली जी इन्होंने भी दिया था।
भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए और भी कई आश्वासन दिए थे। लेकिन उनकी आपूर्ति नहीं हुई है। कृषि-प्रधान भारत देश के किसानों को आप ने आश्वासन दिया था कि, किसान खेती में पैदावारी के लिए जो खर्चा करता है, उसका डेढ़ गुना मूल्य किसानों को अपनी खेती की पैदावारी से मिलेगा। लेकिन आज भी खेती माल को सही दाम ना मिलने के कारण देश का किसान आत्महत्या करने पर मजबूर है। सच बोलने पर तो सगी मां को भी गुस्सा आता है। मैं तो देश की जनता की भलाई के लिए और देश के उज्जवल भविष्य, देश के विकास के लिए सच बोलते आया हूं। इसी वजह से आपको भी शायद गुस्सा आता होगा और सम्भवत: इसी कारण मेरे पत्र आप कूड़ादान में डालते होंगे।
एक प्रधान मंत्री नरसिंह राव जी, थे जो कभी-कभार फोन पर बातचीत किया करते थे। समाज और देश के भलाई की बात किया करते थे। मा. अटल बिहारी वाजपेयी जी कभी पुणे में आने पर जरूर पूछताछ किया करते थे। मुलाकात होने पर देश के विकास और खास कर ग्रामविकास की बातें करते थे। एक प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जिनके विरोध में मैं खूब बोलता था, आंदोलन करता था। उनकी तरफ से भी मेरे पत्र का जवाब मिलता था। श्री शेषाद्री जी जो आर.एस.एस. के जानेमाने नेता थे, उनका और मेरा कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था लेकिन हमारा काम देखने वे रालेगण सिद्धी गांव में आए थे और एक कर्मयोगी का गांव नाम की छोटी किताब उन्होंने लिखी थी। कितने बडे मन के लोग थे।
मेरी यह बिलकुल अपेक्षा नहीं है कि मेरे पत्र का आप मुझे जवाब दें। मेरा हर कर्म निष्काम कर्म है। मुझे आपसे न कुछ लेना न ही कुछ मांगना है। मेरी 25 साल की उम्र में मैंने व्रत ले लिया कि जब तक जीऊंगा तब तक मेरा गांव, समाज और देश की सेवा करूंगा। और जिस दिन मैं मरूंगा, देश की सेवा करते मरूंगा। देश और देश की जनता की भलाई के लिए जनता की ओर से जो पत्र आप के पास आते हैं, मैं मानता हूं कि देश के प्रधान सेवक होने के नाते आपने उनका जवाब देना जरुरी है। यह भी मैं समझ सकता हूं कि, देश की जनता में से हर एक को जवाब देना आपके लिए सम्भव नहीं है। लेकिन समाज और देश के भलाई के लिए समर्पित भाव से देश में कार्य करने वाले कार्यकर्ता को पत्र का जवाब मिलना चाहिए। आपके जवाब न देने से ऐसे कार्यकर्ताओं का कार्य रुकता तो नहीं है। वह चलते ही रहता है।
लम्बे अंतराल के बाद मैंने लोकपाल और लोकायुक्त कानून पर अमल करने के लिए और किसानों के खेती माल के लिए सही दाम मिले ताकि किसान आत्महत्या ना करें, इन बातों की याद दिलाने के लिए पत्र लिखा है। सत्ता तो आखिर आपके हाथों में है। यूं लगता है कि सत्ता की भी एक नशा होती है। सत्ता के आगे मुझ जैसे एक फकीर आदमी का क्या बस चलेगा? किया तो आखिर कार वह आंदोलन ही कर सकता है, जो अधिकार संविधान ने हर नागरिक को दे रखा है।
नए साल की शुभकामनाएं। नए साल के अवसर पर हम सब एक साथ मिलकर भ्रष्टाचार मुक्त भारत निर्माण करने का संकल्प करे।
धन्यवाद।
भवदीय,
कि. बा. तथा अण्णा हजारे
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