Thursday, January 24, 2013

Why do national issues become irrelevant?

Shinde, Hindu, RSS, BJP, Congress, Corruption

क्या देश हित से जुड़े मुद्दे कभी राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा बन पाएंगी? मेरे दिमाग में यही सवाल चलता रहता है। घिन आती है देश की राजनीति को देख के। कुछ दिन पहले तक लगा था कि भ्रष्टाचार एक राष्ट्रीय मुद्दा बन के रहेगा और 2014 के आम चुनाव में एक अहम् रोल अदा करेगा। लेकिन शिंदे के एक बयान ने सबको पीछे छोड़ दिया जो एक सोची समझी साजिश का नतीजा है। ये वही शिंदे जी हैं जिन्होंने कहा था कि  देश की जनता कुछ दिन याद रखती है फिर सब भूल जाती है, अपनी कही गयी उसी बात को ध्यान रखते हुए इन्होने देश के हिन्दुओं को (आरएसएस या बीजेपी को मैं सभी हिन्दुओं का प्रतिनिधि नहीं मानता लेकिन जब भगवा शब्द आता है तो वो सभी हिन्दुओं का संबोधन होता है) आतंकी बता दिया। इसके पीछे उनका मकसद असल मुद्दों से देश की जनता का ध्यान भटकाना था, शिंदे ऐसा सोच सकते हैं क्यूंकि हम (देश की जनता) उन्हें सबक नहीं सिखाते और उनकी बातों में आ जाते हैं और उनके भूल जाने वाले बयान को बल देते हैं।
हम क्यूँ वोट देते समय देश हित को ध्यान में नहीं रखते? क्यूँ जाति और धर्म के आधार पर वोट देते हैं। एक बार आप समझ जायेंगे तो वो ऐसे मुद्दे उठाने की हिम्मत नहीं कर पाएंगे। उनको ऐसे मुद्दे उठाने में आसानी होती है क्यूंकि हम आसानी से उस पे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं और नेता वोटों की फसल काट लेते हैं। हम प्रतिक्रिया देते हैं इसलिए वो ऐसे मुद्दे उठाते हैं। जब देश हित के मुद्दों के आधार पर वोट देंगे तो वो भी सिर्फ यही मुद्दे आपके सामने लायेंगे। उनको लगता है की देश हित के मुद्दे उन्हें वोट नहीं दिलाते इसलिए नेता भी ऐसे मुद्दे नहीं उठाते। नेताओं को दोष देने से पहले हमें खुद को बेहतर बनाना होगा।

आइये एक बेहतर भारत बनाने का संकल्प लें।

जय हिन्द !!!

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