You can chain me, you can torture me, you can even destroy this body, but you will never imprison my mind: Mahatma Gandhi
Sunday, May 29, 2016
Sunday, May 1, 2016
किसानों को फसल का दाम लगाने का हक़ मिले
सोच कर बड़ा दुःख होता है कि हमारे देश में जहाँ पैसा पानी की तरह बहाया जाता है, जैसे कि आईपीएल हो, बड़े घरानों की शादियाँ हों, वहीँ बहुत से लोग भूख से मर जाते हैं, आत्महत्या के लिए मज़बूर हो जाते हैं और बेघर हैं। ग़रीब आदमी क़र्ज़ के बोझ से लदा हुआ है जिसकी परिणति उसकी आत्महत्या में होती है और बड़े व्यापारिक घरानों को कर में छूट दी जाती है। हमें पश्चिमी देशों से सीखना चाहिए जहाँ सोशल सिक्योरिटी होती है जिसे बड़े करदाताओं के पैसों से बड़ी आसानी से दिया जाता है। हमारे देश में लोग अक्सर ये सवाल पूछते हुए दिखाई देते हैं कि मैं इतना कर क्यों दूँ, मैं पूछता हूँ कि आपने जो पैसा कमाया है उसपे थोड़ा सा हक़ तो ग़रीब जनता का बनता ही है क्योंकि जिन संसाधनों से आपने पैसा कमाया है उसपे भारत का नागरिक होने के नाते ग़रीब का भी उतना ही हक़ है।
एक पानी की बोतल २० रुपये में बिक जाती है, कोई नहीं कहता की पानी इतना महंगा है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि किसान अपनी मेहनत और पसीने से जो फसल उगाता है उसकी कीमत वातानुकूलित कमरों में बैठे लोग लगाते हैं, और जो कीमत लगायी जाती है वो कौड़ियों के भाव होती है। इससे किसान के लिए अपनी लागत ही निकाल पाना मुश्किल होता है, क़र्ज़ चुका पाना, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा या परिवार की अच्छी देखभाल कर पाना तो दूर की बात होती है। जैसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पानी की बोतल का दाम लगाने का हक़ है वैसे ही किसानों को भी अपनी फसल का सही दाम लगाने का हक़ होना ही चाहिए। ऐसा करके बेरोज़गार युवाओं को खेती के लिए आकर्षित किया जा सकता है, जो उनके रोज़गार की समस्या में भी बड़ी सहायक सिद्ध होगी।
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