आजकल हमारे देश में इस बात की चिंता कम है कि कई लोग भूख से मर रहें हैं, इस बात की चिंता ज़्यादा है कि कोई क्या खा रहा है। हम बात तो विकास की करते हैं, लेकिन चुनाव के मुद्दे विकास के नहीं होते, और होते भी हैं तो सिर्फ घोषणा पत्रों में। दुनिया कहाँ से कहाँ पहुंच रही है, और हमारे राजनेता आज भी देश की जनता को २४ घंटे बिजली आएगी और सबके रहने के लिए घर होगा का चुनावी वादा करते हैं, ये अपने आप में देश के हालात बयां करती हैं।
मैं यूरोप में रहता हूँ, २०१४ के शुरुआत में यहाँ आया, यहाँ से जब अपने देश के हालात की तुलना करता हूँ तो पाता हूँ कि हम तो कहीं टिकते भी नहीं। भारत का आर्थिक हालत कुछ भी हो, भले ही हम दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में खुद को शुमार करने का दम्भ भरते हों, लेकिन आमजनता के रहने का जो मापदंड है उसकी तो कोई तुलना भी नहीं की जा सकती। यहाँ पर जीवन मूल्य का उच्चत्तम मापदंड है, सबको सारी सुविधाएँ मिल रही हैं, वहीँ हमारे देश में क्या है, लोग सड़कों पर भूखे सोने को मज़बूर हैं और फिर कोई अतिविशिष्ट उनको रौंद कर चला जाता है, और होता कुछ भी नहीं है। सुविधाएँ तो सिर्फ राजनेताओं को मिल रही हैं, लोग पार्टी के नाम पर पारिवारिक कंपनी चला रहे हैं, जहाँ उनके बच्चे एक के बाद एक खप रहे हैं, ऐसी पार्टियां खुद का जनाधार बढ़ाने या उसका वज़ूद बचाये रखने के लिए आमजनता के मन में जाति एवं धर्म के नाम पे ज़हर घोलती रहती हैं।
मेरी मेरे देशवासियों से निवेदन है कि ऐसे राजनेताओं को अपना आदर्श न बनायें और खुद भी ऐसी भ्रामक बातों से बचें और ऐसे लोगों को सबक सिखाएं। इनके मुद्दे चुनाव में बिकते हैं तभी ये ऐसे मुद्दे लेकर आते हैं, जब हम इन मुद्देों को खरीदना या जवाब देना बंद कर देंगे तब ये खुद-ब-खुद सुधर जायेंगे।
मैं यूरोप में रहता हूँ, २०१४ के शुरुआत में यहाँ आया, यहाँ से जब अपने देश के हालात की तुलना करता हूँ तो पाता हूँ कि हम तो कहीं टिकते भी नहीं। भारत का आर्थिक हालत कुछ भी हो, भले ही हम दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में खुद को शुमार करने का दम्भ भरते हों, लेकिन आमजनता के रहने का जो मापदंड है उसकी तो कोई तुलना भी नहीं की जा सकती। यहाँ पर जीवन मूल्य का उच्चत्तम मापदंड है, सबको सारी सुविधाएँ मिल रही हैं, वहीँ हमारे देश में क्या है, लोग सड़कों पर भूखे सोने को मज़बूर हैं और फिर कोई अतिविशिष्ट उनको रौंद कर चला जाता है, और होता कुछ भी नहीं है। सुविधाएँ तो सिर्फ राजनेताओं को मिल रही हैं, लोग पार्टी के नाम पर पारिवारिक कंपनी चला रहे हैं, जहाँ उनके बच्चे एक के बाद एक खप रहे हैं, ऐसी पार्टियां खुद का जनाधार बढ़ाने या उसका वज़ूद बचाये रखने के लिए आमजनता के मन में जाति एवं धर्म के नाम पे ज़हर घोलती रहती हैं।
मेरी मेरे देशवासियों से निवेदन है कि ऐसे राजनेताओं को अपना आदर्श न बनायें और खुद भी ऐसी भ्रामक बातों से बचें और ऐसे लोगों को सबक सिखाएं। इनके मुद्दे चुनाव में बिकते हैं तभी ये ऐसे मुद्दे लेकर आते हैं, जब हम इन मुद्देों को खरीदना या जवाब देना बंद कर देंगे तब ये खुद-ब-खुद सुधर जायेंगे।